Thursday, 5 April 2018

तन बूढा पर मन बच्चा ,क्या करू इसका

आज नींद नहीं आ रही
नींद की गोली ली तब भी नहीं
मन मे बैचेनी , डर
एक. समय था घोड़े बेचकर सोता
शरीर के अंग शिथिल हो रहे
साथ छोड़ रहे
नींद भी ,अपने भी
उन पर भार हूँ मैं जैसे
सीधे मुंह बात भी नहीं कर सकते
प्रेम और आदर तो दूर की बात
जैसे मुझे ढोए जा रहे हो
खाना न खाऊ तो भी मनुहार नहीं
दूध न पीऊ तो कोई बात नहीं
सोचता हूँ कोई मेरी जिद पूरी करें.,मनाए
पर वह कहा संभव ??
यही बच्चे जब छोटे थे
जिद करने पर घर सर पर उठा लेते
उनकी जायज - नाजायज हर मांग पूरी होती
पर आज कोई पूछता नहीं
बूढा हूँ पर मन तो हैं पास
बचपन मे चला जाता
फिर न पूछने पर वापस बूढ़े पन मे
डूबता सूरज हूँ
सूखा पेड़ हूँ
तब भला मेरी पूछ क्यों ??
दूनिया की यही तो रीति है
बिना स्वार्थ के कुछ भी नहीं करती

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