Tuesday, 29 May 2018

आकाश की भी उडान भर पक्षी

मीठे -मीठे रसदार फल मिल रहे
स्वादानुसार स्वादिष्ट बिना श्रम के
पागल जैसा क्यों भटकते फिरु
जब सोने का पिंजरा है निवास
अरे भूल मत
यह घर नहीं काराग्रह है
विषसमान यह चारा है
मोहपाश मे बंधा यह जाला है
फिर क्यों तेरा यह पंसदीदा है
ईश्वर ने पंख दिया
कर विचरण सामर्थ्य अनुसार
पर्वत ,पहाड़ , नदी ,सागर
हरे -भरे जंगलों की सैर कर
बिना कष्ट नहीं मिलता फल
पंख खोल उडान भर
दुख होता है
क्यों जीव बेचारा
मायामोह मे जकडा
उड , उड़ ,उड़
श्रम का मोती चुन
श्रमजीवी बन
परायी आस छोड़
स्वयं के बल पर आगे बढ़
ऊंची उड़ान भर
मत पिंजरे मे बैठ
आत्मनिर्भर बन

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