एक समय था जब हम भी रुठा करते थे
खाना पसंद नहीं आता था
पर तब भी बरगर नहीं मिलता था
चंदामामा का नाम ले बहला -फुसलाकर
कौर मुंह मे डाला जाता था
नींद नहीं आती तो
डाकू या गब्बर सिंह की याद दिलाई जाती थी
पुलिस अंकल का हौवा खड़ा किया जाता था
आज वह समय नहीं रहा
हर मर्ज की दवा बन गया मोबाइल
फिर रोना हो या रूठना
रो मत मोबाइल से खेल
दो साल से ही हाथ मे मोबाइल पकड़ा
फिर यह तो कभी नहीं छूटा
हाँ अपने भले छूट गए
मोबाइल तो बन गई सबसे बड़ी जरूरत
छोटा बच्चा या फिर जवान
सबकी आदत मे यह शुमार
भूख -प्यास सब भाग जाती
नींद तो दूर से ही नखरे दिखाती
माँ की लोरी भी नहीं लगती प्यारी
चंदा.मामा तो कबके हो गए दूर
अब गब्बर से नहीं लगता डर
सारी दूनियां से बेखबर हम
जब मोबाईल से मिलता
स्वर से स्वर
पल भर मे सब हाजिर
दिल की धड़कन है यह
भाई मेरा प्यारा मोबाइल है यह
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Tuesday, 29 May 2018
भाई , यह मोबाइल है , कस कर पकड़
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