घर का खाना कुछ खास नहीं
घूम -फिर कर वही
कभी यह तो कभी वह
मन करता है होटल मे खाना
जाते हैं ,आराम से बैठते हैं
वेटर मेनूकार्ड लेकर आता है
हम आर्डर देते हैं
विभिन्न तरह के व्यंजन
आकर्षक नाम
सजावट बेहतरीन
स्वाद भी लाजवाब
पैसा भी कम नहीं
पर क्या सचमुच मन भरा
शायद नहीं
कुछ समय के लिए संतुष्टि
पर यही हर रोज खाना हो तो
ऊब जाएंगे
घर की दाल -रोटी भी मनभावन
घर तो घर ही होता है
चाहे वह खाना हो या रहना
वहाँ हम मुसाफिर नहीं होते
वहाँ प्रेम -अपनापन होता है
पाँच सितारा होटल हो या
मंहगे व्यंजन
घर की बात ही कुछ और.
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Friday, 29 June 2018
घर का खाना और घर की बात
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