Monday, 1 October 2018

मेरा भविष्य

यह होठों पर मुस्कान
चेहरे पर तेज
गंभीर भावभंगिमा
बहुत कुछ बयान कर रही
आँखे कहीं दूर भविष्य की ओर
ऐसा बनना है
ऊपर मंजिल तक पह़ुंचना है
अभी तो पहली सीढी
जीवन को संवारना -निखारना है
यह बंद आँखों का सपना नहीं
खुली आँखों की हकीकत है
परचम फहराना है
जब शीशे मे देखू प्रतिबिंब
तब स्वयं पर हो गुरूर
स्वयं भविष्य बनाउ
किसी पर निर्भर न रहूं
मेरा निर्णय मेरा हो
किसी की दखलंदाजी न हो
निकले मुख से
वाहःःः क्या बात है
शुभान अल्लाह

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