Thursday, 6 December 2018

यही सत्य है

सर्द मौसम
कुनकुनी धूप
कितना अच्छा लगता है
कोमल और मखमली
यह सबको भाती है
धीरे धीरे प्रखर होती जाती है
तपिश निर्माण करती है
उर्जा से भरपूर
इतनी आग कि
कोई भी तप जाय
भरी दोपहरी
आग उगलती
फिर धीरे धीरे ढलान की ओर
वह प्रस्थान करती है
शांत और नीरव
अंधकार घिरने लगता है
वह लुप्त हो जाती है
अगले दिन वापसी के लिए
यही जीवन है भाई
बचपन ,यौवन और वृद्ध
अंत मे मृत्यु की ओर प्रस्थान
और आत्मा का नये जीवन मे जाकर
इस संसार मे नये रूप मे आगमन
यह जीवनचक्र चलता रहता है
हम जन्म पर जन्म लेते रहते हैं
आत्मा वही रहती है
शरीर अपना चोला बदलता है
जन्म -मृत्यु के जंजाल मे जकड़ने
का नाम ही जीवन है
यही सत्य है
बाकी सब मिथ्या है

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