जिंदगी गुजरी है हमारी भी तुम्हारी भी
तुम्हारी हंसकर हमारी रोकर
तुम्हारी आलीशान फ्लैट मे
हमारी छोटे से कमरे मे
तुम्हारी मंहगी गाडियों मे
हमारी बस और ट्रेन के धक्के खाते
तुम्हारी आराम मे
हमारी संघर्षों मे
तुम चांदी के चम्मच से खाए
हमने हाथों से चाटकर
तुम मंहगें स्कूल में
हम महानगर पालिका विद्यालय में
तुमनें तरक्की की
हम गृहस्थी का बोझ ढोते रहे
तुमने आसमान की उड़ान भरी
हम धरती पर ही सिमटे रह गए
तुम्हें दूनिया पहचानती है
हम अपने ही शहर मे अजनबी है
तुम्हारे जनाजे मे पीछे सारा आलम चलेगा
हमारे मे चंद लोग
बस इतनी सी बात होगी
चार कंधे पर सवार तुम भी ,हम भी
जाएंगे एक ही स्थान
वह है श्मशान
यही एक राह है समान
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Sunday, 20 January 2019
श्मशान की राह
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