वह भी एक शादी थी
वह भी एक बारात थी
सब कुछ शांतिपूर्ण होता था
हाँ बैंड बाजा होता था
थोडा बजाकर चले जाते थे
तीन दिन तक चलती थी
द्वार पूजा ,शादी ,जनवासा और बिदाई
गांव मे ही तंबू गाडा जाता था
सबके घर से चारपाई ,गद्दे ,तकिया ,चादर आ जाती थी
खाना भी बारातियों का लोग ही बनाते थे
मिठाइयाँ बनाने हलवाई अवश्य आता था
दूध दही सब्जी और अनाज तक रिश्तेदार के यहां से
अपने गांव की इज्ज्त सबकी इज्जत
नाई ,कहार ,धोबी ,पंडित हर एक का सहयोग
सब घर के सदस्य ही समान
न रोशनी की चमक दमक
न तामझाम
न फोटोग्राफी
न वीडियोग्राफी
न दूल्हा - दूल्हन एक दूसरे से मिलते थे
फिर भी जन्म जन्म का रिश्ता बन जाता था
रिश्तेदारी दो - तीन पीढियां तक चलती थी
भावनाओं का बंधन था
रिश्तेदार सुख दुख के साथी थे
दो लोगों की शादी नहीं
बल्कि परिवार और गाँवों मे रिश्ता बनता था
समय बदला
शादी का रंग ढंग भी बदला
हर फोटो फेसबुक पर डाला जाता है
शायद लोग देखे और तारीफ करें
उस समय फोटोज नहीं थे
पर वह शादी और बारात
जेहन पर सालोंसाल अंकित हो जाते थे
Hindi Kavita, Kavita, Poem, Poems in Hindi, Hindi Articles, Latest News, News Articles in Hindi, poems,hindi poems,hindi likhavat,hindi kavita,hindi hasya kavita,hindi sher,chunav,politics,political vyangya,hindi blogs,hindi kavita blog
Saturday, 19 January 2019
तब भी शादियां होती थी
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment