Friday, 15 March 2019

एक मां की व्यथा

मेरा बेटा तो रोज ही इस पुल से जाता था
बचपन मे तो मेरे साथ जाता था
स्कूल छोड़ने जाती थी
रोता था
मचलता था
कभी कभी जिद करके  लोट भी जाता था
पर फिर भी मैं घसीटते ले जाती थी
कभी मनुहार करती थी
कभी ऊपर ही छोडकर नीचे भी ऊतर जाती थी
आएगा अपने आप ही
पुल पर मेरा बच्चा सुरक्षित है
गाड़ी मोटर से बचा हुआ
वह बड़ा हो गया
अब काँलेज जाने लगा था
इसी पुल को पार कर जाता था
पर आज उसी ने उसे निगल लिया
वह ढह गया
अपने साथ ही मेरे बच्चे को भी ले गिरा
अब वह लौट कर नहीं आने वाला
जिसको मैं सुरक्षित समझ रही थी
उसीने उसको काल के गाल मे समा लिया
उसे है से था बना दिया
उसका जीवन छीन लिया
मां से उसका लाल 
गोदी की शोभा को मिटा दिया
ऐसा पुल तो फिर बन जाएगा
पर मेरा बेटा अब लौट कर न आएगा

      पुल दुर्घटना पर एक मां की व्यथा

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