Saturday, 15 June 2019

बेघर

बारिश आई
हमें बेघर कर गई
फूटपाथ पर आशियाना हमारा
वह हवा के झोंको से उड गया
सर पर तालपतरी थी
वह भी नहीं रही
किसी दुकान के छपने के नीचे
कभी बस स्टैंड पर
तो कभी पेड के नीचे
दिन तो गुजरी
रात गुजारने की मुसीबत और
सूखे से ग्रसित गांव से भाग शहर को आए
यहाँ भोजन तो मिला
काम भी मिला
ठिकाना नहीं
हालात के मारे हम
समझ नहीं आता
करे तो क्या करें
प्रकृति की मार भी हम पर
कभी सूखा तो कभी बरसात
हर हाल में बेघर होना है
लाचार है
परेशान हैं
जीना मुहाल है
फिर भी आस है
अपने आशियाने की

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