फिर हुई बरसात
फिर गिरी इमारत
हर साल हादसा
जान जाती है
बेघर हो जाते हैं
मुआवजे की घोषणा
फिर सब कुछ सामान्य
इमारत जर्जर है
रहना खतरा है
फिर भी रहा जाता है
सवाल रोटी और मकान
रोटी तो किसी तरह मिल ही जाती है
पर मायानगरी मुंबई में घर
यह तो आसान नहीं बल्कि एक तरह से असंभव
संकरी गलियां
जर्जर पुरानी इमारते
सुख सुविधा का अभाव
फिर भी रहने को मजबूर
जाए तो जाए कहाँ ??
कई पीढियाँ गुजर जाती है
परिवार बढते जाते हैं
तब भी रहना है
आवास को छोड़कर जाए कैसे ??
जान हथेली पर लेकर रह रहे
जान गई
अपने रहे नहीं
पर इस समस्या का समाधान क्या
दोषी कौन ??
रहवासी
सरकार
प्रशासन
शायद उत्तर निरूत्तर
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