Wednesday, 3 July 2019

बैठ रहना जीवन नहीं

बारिश की बूँदें गिर रही
आसमान से तो सब एक साथ चली
बादल ने सबको आगोश में लिया
सब एक साथ गिरी
बिना डरे
बिना हिचके
पता नहीं कहाँ गिरे
सबकी नियति अलग अलग
पर उन्हें आने में डर नहीं लगा
कब तक बैठी रहती बादल के आगोश मे
कदम तो आगे उठाना ही है
चलना तो पडेगा ही
देखा जाएगा
कहाँ पहुँचते हैं
वह तो निश्चित नहीं
निश्चित तो जीवन भी नहीं
फिर क्यों न चुनौती स्वीकार करें
बैठ रहना जीवन नहीं

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