Tuesday, 24 September 2019

बेटी ही नहीं माॅ भी हूँ

बेटी तो मैं थी ही
आज अचानक बडी हो गई
इक बेटी की माॅ बन गई
सब कुछ सुहावना लगने लगा
घर - आंगन महकने लगा
जब हाथों में थामा बिटिया को
सारा संसार इसमें समाया लगने लगा

यह प्यारी बिटिया रानी
झुन झुन इसकी जब पायल बजती
मेरे मन-मंदिर में घन घन घंटी बजती
जब जब यह मुस्कराती
तब तब मेरा अंतर्मन प्रफुल्लित हो उठता
जब जब यह तोतली बोली में बतियाती
मेरे कानों में संगीत की स्वरलहरिया गूंजती
जब यह हौले हौले दुग्धपान करती
तब स्वर्ग की अनुभूति होतीं
जब यह सोती नींद भर
तब मेरी भी नींद हो जाती पूरी
जबसे यह आई
दिन हो गए सुहाने
रात हो गई चमकीली
इसका जीवन मेरा जीवन
लगती अगर इसको ठोकर
सिहरता रोम रोम मेरा
बडी नाजुक और कोमल है
प्यारी और चंचल है
इसका बचपन देख मेरा बचपन साकार हो उठा
याद आ गई
अपनी माँ
उसने भी तो यह अनुभव किया होगा
बडे नाजो से पाला होगा
अपनी खुशियाँ न्योछावर की होगी
मेरे आते ही वह बडी बन गई होगी
मुझे देख निहाल होती होगी
हर पल निहारती होगी
उसकी ऑखों में मुझे देख चमक आ जाती होगी

हर गलती पर डांटने वाली माँ
आज प्यारी लगने लगी
उसकी ऑखों में वही ममता दिखाई देने लगी
वही चिंता दिखी जो मुझे मेरी बेटी को लेकर रहती
आज तक कठोर समझने वाली माँ
आज नम्रता की मूरत लगने लगी
यह चमत्कार हुआ कैसे
यह तब मैं समझीं
जब मैं बेटी से माँ बन गई
बेटी ने मुझे माँ से मिलवाया
असलियत से परिचय करवाया
सपनों से धरातल पर ला खडा कर दिया

बेटी और माँ के बीच की कडी हूँ मैं
भूत ,वर्तमान और भविष्य की डोर हूँ मैं
कल , आज और कल के बीच आज बन खडी हूँ
मेरा एक नया वजूद है
आज मैं बेटी ही नहीं माॅ भी हूँ
सबसे बहुमूल्य सौगात की साक्षीदार हूँ
संसार चक्र को चलाने में भागीदार हूँ
आज मैं बेटी ही नहीं माॅ भी हूँ ।

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