Sunday, 6 October 2019

आज आरे तब कल अरेरररर

मुझे मत काटो
मुझे मत काटो
मैं तो तुम्हारी सांसों से जुड़ा
तुम्हें दिन भर प्राणवायु देता
और तुमने क्या किया
रात के अंधेरे में ही मुझ पर कुल्हाड़ी चला दी
काट काट कर मेरे टुकड़े कर दिए
मुझे लहू-लुहान कर दिया
क्षत विक्षत कर दिया
यह भूल गए
कुल्हाडी हम पर नहीं
अपने पर चला रहे हो
अपनी ही सांसों के साथ खेल रहे हो
आने वाली पीढ़ी को गर्त में ढकेल रहे हो
रात के अंधेरे में तो चोर ,चोरी करता है
तुम चोरी चोरी मुझे ही नष्ट कर रहे हो
ताकि कोई जान न सके
आवाज न उठा सके
यह तो बहुत घातक है
अपने ही जीवन में अंधेरा फैलाना
फिर तमाशा देखना
कहीं सबका जीवन तमाशा न बन जाए
आज आरे रो रहा है
वह मुश्किल में है
आरे को उजाड़ दिया
तब बाद में
अरे अरे यह क्या हो रहा है
यही कहते रह जाना है
बाद में पछताना है
शुद्ध वायु को खो कर
नाक पर रूमाल रख दूषित हवा से बचना है
वह भी कब तक ???
आज आरे कल कोई और
पहले भी हुआ
अब भी हो रहा है
आगे भी होगा
विज्ञान के युग में
स्वयं मशीन बन जाना है
मशीन और मानव
और सब गायब
बस अपनी धुन बजाना है
धीरे-धीरे बीमारी में जकड़ कर
वहाँ प्रस्थान कर जाना है
जहाँ औरों को भेज रहे हैं
पेड़ पौधे ,पहाड ,जीव जंतु
सबको भेज अंत में वही चल देना है
किसी की बलि का मूल्य तो चुकाना है
करनी का फल तो मिलना है

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