Friday, 20 December 2019

जीवन का चक्कर

अब गुडिया बन गई बुढिया
अब बिटिया बन गई ददिया
अब आ गई चेहरे पर झुर्रिया
अब पोपले मुख से हंसती चुनिंदा दतियां
अब बालों में आ गई सफेदियां
ऑखों में छा गई धुंधलिया
अब बिछडने लगी है हमजोलियां
शरीर में आ गई कमजोरियाँ

जुबान है लडखडाती
पैर हैं कंपकपाते
शरीर है थर्राता
कान हो गया बहरा
जानते हैं
यह सब क्या दर्शाता
कानों के पास आकर कुछ कहता
उसकी बात पर गौर करो
अब छोड़ दो नादानियां
गई जवानी
आया बुढापा
जो कुछ हो रहा
वह चुपचाप देखते रहो
खाओ और पडे रहो

प्रभु का नाम जपो
अब इसी का एक सहारा
किसी को अब नहीं भाएंगी तुम्हारी दखलंदाजियां
सब कुछ नजरअंदाज करों
अब तक बहुत किया
अब तो संन्यास लो
सबसे मोह भंग करों
करना ही है
देना ही है
तो जी भर कर आशीर्वाद दो
कभी जमाना तुम्हारा
आज किसी और का
यही चक्कर है जीवन का

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