हम दौड़ लगा रहे थे
रफ्तार में भाग रहे थे
जिंदगी आहिस्ता आहिस्ता चल रही थी
कभी तो आहट देती है
कभी अंजान बन जाती है
कभी-कभी कदमों की चाप की आवाज आती है
तब लगता है
सब ठीक है
जिंदगी मेहरबान है
हम खुश हो लेते हैं
अचानक जोरदार झटका देती है
सारे होशोहवास उडा डालती है
धम्म से जमीन पर ला पटकती है
हम अवाक से देखने लग जाते हैं
फिर हम उठने की कोशिश करते हैं
पर समय भी तो लगता है
वह जोर का झटका
संभालने के लिए
पता नहीं क्या क्या करना पडता है
हम भागते तो हैं
गिरते ,उठते ,संभलते ,चोट को सहलाते
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Friday, 3 January 2020
हम दौड़ लगा रहे थे
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