Wednesday, 1 April 2020

डर लगता है मृत्यु से

डर लगता है
मृत्यु से
बिलकुल सही
इससे तो हमेशा डर लगता है
एक यही सत्य जीवन का
और सब तो अनिश्चित
आज हर शख्स डरा है
क्या होगा
कहना मुश्किल
स्वयं को बचा रहा
जीवन ठहर सा गया
कब तक यह ठहराव
राम जाने

कितना बेबस और लाचार है
कहने को तो शक्तिशाली
पर उसके हाथ में कुछ नहीं
कुछ भी तो नहीं
भाग्य पर निर्भर
प्रकृति का किस रूप में कहर
इसका तो अंदाजा भी नहीं
सब जीवों में बुद्धिमान
आज उसकी बुद्धि काम नहीं कर रही
एक वायरस के प्रकोप से
मन में समा गया है खौफ

कल कल और आज आज
करते-करते न जाने पहुंच जाए किस हाल
दया आ रही है
अपनी ही लाचारी पर
अपनी ही बेबसी पर
सबसे हो रहा है मोहभंग
क्या यही है हमारी औकात
कभी परिस्थितियों का मारा
कभी दुर्भाग्य से बनता बेचारा
कभी सुनामी कभी भूकंप
कभी दुर्घटना कभी करोना
हर हाल में है रोना

भविष्य की चिंता में रत
हमारा वर्तमान भी तो
रहता है हमेशा अधर में
क्या ख्वाब क्या कल्पना
क्या आशा क्या आंकाक्षा
सब रह जाते हैं यही धरे
डर लगता है मृत्यु से
बिलकुल सही

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