माँ से ही घर में मिठास
माँ से ही घर में त्यौहार
माँ से ही घर में रौनक
माँ से ही रिश्तों में बहार
माँ है तो घर में बनते पकवान
खाती भले न वह पर बनाती जरूर
माँ है तब ही त्यौहार की तैयारी
ईश्वर की पूजा और दरवाजे पर वंदनवार
माँ न रहे तो घर लगता खाली खाली
नाश्ता पानी तो मिल जाता
पर मिलता न वह प्यार और अपनापन
माँ है तभी घनघनाती फोन की घंटी
हाल-चाल पूछने को तत्पर रिश्तेदार
घर में रिश्ते चलकर आते हैं
आशीर्वाद लेने हर मौके पर
भाई - भाभी - भतीजे आते
उसको देखने के बहाने हमसे भी मुलाकात हो जाती
जिस दिन तुम न रहोगी
इस तरह इनका आना न हो पाएगा
ऐसा नहीं कि
हममें प्रेम नहीं है
पर माँ तो माँ होती है
रिश्तों को जोड़कर रखती हैं
न भी चाहे तो बरबस बुलाती है
उसे कोई इंकार नहीं कर सकता
माँ की जगह कोई ले ही नहीं सकता
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