कब उठे और कब सोये
आजकल यह याद नहीं
कब रात हुई कब सुबह हुई
आजकल यह याद नहीं
क्या काम हुआ क्या बाकी
आजकल यह याद नहीं
बस किसी तरह दिन काट रहे
खा रहे हैं
कितना खाया क्या खाया
आजकल यह याद नहीं है
सब कुछ गडबडझाला है
लगता है निकम्मापन छाया है
वही वही हर रोज वही
हर पल वही
बस कान एक खबर सुनने को बेताब
कब बंदिशो पर लगेगा लगाम
कब जिंदगी फिर होगी खुशगवार
कब ढर्रे पर लौटेगी जिंदगी
कब पहले वाले रात और दिन होंगे
बस सबके मन में है
यही एक सवाल
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Tuesday, 21 April 2020
यही एक सवाल
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