बूढापा , बीमारी और मृत्यु
जीवन का सत्य यही
सिद्धार्थ को बोध प्राप्ति का कारण
यह सब क्यों होता है
हर जीवन की परिणति क्या यही ??
उत्तर ढूंढने निकल पडे
समाधिस्थ हुए
पेट में अन्न गया
तब बोध हुआ
सिद्धार्थ से भगवान बुद्ध बने
आज फिर वही समय
सोचने को मजबूर
असहाय मनुष्य
बीमारी और मृत्यु से डरा हुआ
जीवन का फलसफा सब धरा है
बस जीने की चाह है
जी गए तब ही आगे का
दो हजार बीस तो बस जीवन को सलामत रखने का
हम सिद्धार्थ नहीं है
सामान्य प्राणी है
इससे ज्यादा न सोचना और न समझना
हमारे लिए जीवन ही सब कुछ
आज बुद्ध पूर्णिमा है
अचानक बचपन में पढी
इतिहास की कहानी याद आ गई
लगता है जीवन का सच वही
जो भगवान बुद्ध ने समझा था
हम तो तब समझते हैं
जब आपदा आती है
आज आपदा सर पर खडी है
और मानव अपने विज्ञान के साथ भी बेबस
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