कितनी भी बोली किसी की मीठी हो
चीनी की चाशनी में डुबोई हुई हो
पर माँ की आवाज के आगे वह फीकी
कितना भी स्वागत सत्कार हो
कितना भी सुस्वादु भोजन हो
पर माँ की रोटी के आगे वह फीके
कितना भी अपनापन हो
गले मिलना हो
हाथ मिलाना हो
पर माँ के सर पर हाथ फिराने के कारण सब फीके
कितना भी मुलायम गद्देदार बिस्तर हो
आरामदायक हो
पर माँ की गोद के आगे सब फीके
कितना भी बडा घर हो
ऐशोआराम हो
जरूरत की हर चीज मुहैया हो
पर माँ के छोटे से घर के आगे वह फीके
कारण वहाँ ममता बसती है
प्यार दिल में होता है
दिखावा नहीं
कोई ताम झाम नहीं
तभी तो माँ से ही मायका है
माॅ न हो तो
वह अपना नहीं लगता
माॅ के साथ ही हक होता है
अन्यथा वह होटल लगता है
घर तो माँ से ही घर लगता है
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Sunday, 10 May 2020
माँ से ही घर , घर लगता है
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