पढाते समय दिखता है बच्चों का भोला चेहरा
कुछ के चेहरे पर शैतानियॉ ,कुछ कल्पना में खोए
कुछ उत्सुकता से सुनते , कुछ ऊबते हुए
कुछ उबासी लेते ,कुछ हलचल करते
कभी डाट तो कभी देख कर अंजान
अपना बचपन याद आ जाता है
मन ही मन चेहरे पर मुस्कराहट दस्तक दे जाती है
परीक्षा के समय सुपरविजन करते समय
बच्चों के चेहरे पर चिंता , हडबडाहट ,बैचेनी
कुछ तेज तो कुछ धीमे ,कुछ इधर- उधर ताकते हुए
प्यार उमड पडता है
अपने बच्चों का बचपन याद आ जाता है
उन्होंने भी इसी तरह यह पडाव पार किया होगा
परीक्षा का पेपर जॉचते समय
कुछ का बेहतरीन , कुछ का सामान्य
कुछ का बेतरतीब , कुछ का बेढंगा
कुछ का बिना लिखे ,केवल प्रश्न उतारा हुआ
कुछ गलतियों से भरा , कुछ अस्पष्ट
सबको समझने की कोशिश करती
आखिर बच्चे हैं , सीख रहे हैं
धीरे - धीरे सब आ जाएगा
हदय में दया उमड पडती है
सब तो एक समान नहीं हो सकते
चिढकर और क्रोधित हो क्या होगा??
ये छोटे- छोटे नौनिहाल अपने सामर्थ्य अनुसार प्रयत्नरत है
सीखते , सीखते ही सींखेगे
बच्चे तो आखिर बच्चे ही होते हैं।
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Thursday, 13 July 2017
बच्चे तो आखिर बच्चे हैं
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