Wednesday, 27 May 2020

दो हजार बीस का कहर कोई नहीं भूल पाएगा

यह वक्त भी गुजर जाएंगा
पर बहुत कुछ छोड़ जाएंगा
पर जाते जाते न जाने कितनी तबाही मचा जाएगा
किसको किसको उजाड़ जाएंगा
कितनों को अनाथ कर जाएंगा
कितनों को अपनों से अलग कर जाएंगा
कितनों को मायूस और बेबस कर जाएंगा
कितनों को बेकारी के दलदल में छोड़ जाएंगा
कितनों को बेघर कर जाएंगा

कैसे कोई भूला पाएंगा वह मंजर
जब अपने तडप रहे थे
वे असहाय थे
अपनों को रूखसत करने के लिए
चार कंधों का सहारा न दे पाए
उनके साथ चार कदम न चल पाएं
आखिरी क्षण में उनसे बात न कर पाएं
उनका दर्शन न कर पाएं
यह तो दर्द की इंतेहा है

लोग सडकों पर भूखों मर रहे
अस्पताल में वेंटिलेटर के अभाव में दम तोड़ रहे
पटरी पर कटकर मर रहे
डर के मारे सुशाइड कर रहें
अपने दूधमुहे बच्चे को देखने से तरस रहे
अपने ही अपनों के पास नहीं जा पा रहे
न उनकी देखभाल कर पा रहे
बस अस्पताल के सहारे छोड़ रहे

पुलिस डाॅक्टर नर्स
सब मजबूर
जान जोखिम में डाल कर काम किए जा रहे
अपनी जान भी गंवा रहे
समझ नहीं आ रहा
कैसे इसे कंट्रोल करें
सभी के चेहरे पर डर
माथे पर शिकन
कब क्या हो नहीं मालूम
सब दुविधाग्रस्त
लाकडाऊन कर काम धंधा छोड़
मुख पर मास्क लगाएं सब बैठे हैं
स्कूल और कॉलेज भी बंद
भविष्य भी कमरे में ही बंद
कुछ सीख रहा है
आगे की सोच सब पर पानी पडा
कब ये सामान्य होगा
कब जीवन पटरी पर दौड़ेगी

यह वक्त भी गुजर जाएंगा
पर बहुत कुछ छोड़ जाएंगा
दो हजार बीस का कहर कोई नहीं भूल पाएगा

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