आज मैं बहुत दुखी हूँ
मुझ पर रेलगाड़ी दौड़ती है
लोगों को गंतव्य तक पहुंचाती है
मैं न रहूँ
मुझमें कोई खराबी आ जाएं
तब सब ठप्प
आज तो मैं ठीक ठाक हूँ
जिस पर गाडी चलती थी
उस पर लोग चल रहे हैं
चलते जा रहे हैं
ठोकर खाते
गिरते पडते
पत्थर पर पैर घिसटते
क्योंकि मैं सडक नहीं हूँ
अलग हूँ
जहाँ कोई जल्दी नहीं रोकेगा
फिर जिस पर गाडी का पहिया
आज वही पटरी रास्ता दिखा रही है
यह जहाँ जहाँ से गुजरी है
वही से हम गुजरेंगे
पहुंचा ही देगी
पर लोग मुझ पर सो जाएँगे
आराम करेंगे
तकिया बना कर सर रख लेंगे
यह तो मेरे लिए बिलकुल नया
पर मैं जानलेवा हो जाऊंगी
सब कटकर मर जाएंगे
मेरी शरण लिए हुए
यह तो नहीं जान रही थी
ऐसा नहीं कि
मृत्यु को मैंने देखा नहीं
लोग मुझपर कटकर मरे नहीं
लेकिन तब मैं उतनी दुखी नहीं थी
कारण भी अनेकों थे
पर आज सिसक रही हूँ
जो मुझे सहारा समझ कर घर जा रहे थे
उनको घर नहीं
दूसरी दुनिया में पहुंचा दिया
क्या इसके लिए मैं भी उतनी ही दोषी नहीं
आज मैं बहुत दुखी हूँ
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Saturday, 9 May 2020
आज मैं बहुत दुखी हूँ
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