वह धरती से चांद को देखता था
चांद तारों से बडा प्यार था
रात को झिलमिलाते तारों को निहारा करता था
अपनी दूरबीन लिए घंटों बैठा रहता था
उनके खेल देखता था
अपने आप मुस्कराता और खिलखिलाता था
बहुत प्यारा लगता था
तभी तो चांद पर जमीन ले रखी थी
जाने की तमन्ना
रहने की तमन्ना
सब धरा का धरा रह गया
धरती को ही छोड़ चला
चांद तो अमावस्या को ही छिप जाता है
तुम तो हमेशा के लिए छिप गए
सबको अंधकार में भर गए
अब तो पूर्णिमा कभी नहीं आएगी
ऐसी रिक्तता छोड गए
अपने परिजनों को जीवन को अंधकार कर गए
अब हमारे लिए सब दिन एक समान
चांद देखकर क्या करेंगे
जब तुमको न देख पाएंगे
हमारा तो चांद भी तुम
सूरज भी तुम
हमारा चिराग तुम
तुमसे ही जीवन में थी रोशनी
अब क्या करें
कैसे जीए
किससे व्यथा कहें
बुढापे की लाठी तो चला गया
पंचतत्व में विलीन हो गया
बस याद छोड़ गया
हमको अकेला कर गया
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Friday, 26 June 2020
चांद पर जमीन
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