जो पैदल चल सैकडों किलोमीटर यात्रा की
परिवार के साथ भूखे प्यासे
चलते रहे चलते रहे
पैर में छाले पड़े
गर्मी से बेहोश हुए
कुछ ने दम तोड़ा
कुछ को कंधे पर लादे
कुछ को गोद में उठाए
कुछ को गर्भ में रख
चला यह काफिला
कोई रिक्शा
कोई व्हील चेयर
कोई साईकिल
कोई दूध का टैंकर
कोई सींमेट के मिक्चर
कोई ट्रक कोई बस
नहीं तो पैदल ही
मन घायल हुआ होगा
तन को तकलीफ अलग
अपनों को भी खोया
आज फिर उनको बुलाया जा रहा है
किसी कंपनी ने तो हवाई जहाज से बुलाया है
अब जरूरत है उनकी
काम धंधे उद्योग सब इन पर निर्भर
अब इनकी अहमियत समझ आ रही है
जिन्हें नजरअंदाज किया जाता रहा है
बोझ समझा जाता रहा है
वह बोझ नहीं बोझ उठाने वाले हैं
देश का शहर का
कुछ लौटेंगे कुछ नहीं भी
पर वह मंजर कभी न भूलेंगे
न वे न लोग
सदियों याद रहेंगे
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Saturday, 6 June 2020
बोझ नहीं है मजदूर
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