Wednesday, 23 September 2020

बरखा रानी आई है

झर झर बरसे बरखा
झन झन करता मन
डोलता है चहुँ ओर
बोलता है कुहू कुहू
नाचता है झनन झनन
यह किसके कारण
बरखा रानी जो कृपा बरसा रही
जाते जाते भी उपकार कर रही
तपती धूप के बीच आकर
सबको तृप्त कर रही
अपेक्षा न थी
पर बरस रही है
झरझरा कर गिर रही है
घरघरा और हरहरा रही है
पेड़ पौधे पर हरियाली ला रही है
पशु-पक्षियों को भी तृप्त कर रही है
घर में हम कैद है
बाहर से नजारा दिखा रही है
मौसम सुहाना कर रही है
सदाबहार है बरखा रानी
जब भी आए
जब भी बरसे
हरदम स्वागत है
जल देती है
जीवन देती है
सृष्टि का संचालन इनके बिना नहीं
सबको जीवनदान
जीवनदायिनी का उपकार जितना माने उतना कम
बरखा रानी आई है
सारी खुशियाँ लाई है

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