Wednesday, 23 September 2020

शिकारी ताक में

कहना तो बहुत कुछ था
मन की बाते थी
मन में ही मुसमुसाकर रह गई
हमेशा फुसफुसाती रहती थी
बाहर आने को बेताब
पर कोई मिल न सका
इन्हें कोई सुन न सका
समय की कमी थी कुछ के पास
कुछ पर विश्वास न था
भय था अंदर
अगर बाहर आई
तो सार्वजनिक न बन जाए
गुप्त रहना चाहती थी
वह कहाँ संभव था
बहुत लोग बेताब थे
सुनने को उत्सुक थे
एक टाॅपिक मिल जाता गाॅसिप का
जो उनके लिए सबसे बडा टॉनिक
उसके बिना भोजन पचता नहीं इनका
इनकी मानसिक खुराक है यह
कुरेदते रहते हैं
कुछ तो मिले जो मन को भाए
ऐसे में कहना सुनना सब बेमानी
मन की बात मन में रखना ही सबसे बडी समझदारी
सुन इठलैहे बाँट न लैहे कोय
मन की मन में रखे
सावधान रहें
यहाँ शिकारी ताक में है
खुराक की फिराक में है
मनोरंजन का जरिया ढूंढने में लगे
तब सतर्कता भी जरूरी

No comments:

Post a Comment