कोमल रहे फूल की तरह
कठोर रहे पानी की तरह
अडिग रहे चट्टान की तरह
धीरज रहे समुंदर की तरह
लचीला रहे बेल लता की तरह
दानवीर बने पेड़ की तरह
विशाल बने आकाश की तरह
सहनशील बने पृथ्वी की तरह
प्रकाश बने सूर्य की तरह
शीतल बने च॔द्र की तरह
गतिशील बने हवा की तरह
उडान भरे पंछी की तरह
यह सब गुण तो हो
साथ में पांव जमीन पर हो
अंहकार और घमंड का यहाँ नहीं कोई काम
अंत में सबकी एक ही राह
जाना तो वहीं है
कोई आज तो कोई कल
तब इंसान बने
इंसानियत की राह चलें
पशुता पशु को ही शोभती है
खूंखार जानवर हो सकता है
मानव नहीं
बल और बुद्धि का जिसमें है समावेश
करूणा और दया जिसमें विद्यमान
क्षमा का बल सबसे बडा
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जो विष गरल हो
उसको क्या जो विषरहित सरल हो
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