जिंदगी भर यही सोचते रहें
कल क्या हुआ था
कैसे बीत गया
मन मसोसकर रह जाता है
न कोई ख्वाब पूरे हुए न सपने
जिंदगी की आपाधापी में जीवन गुजर गया
पीछा छूटता ही नहीं है इनसे
ये कल आज में भी जीने नहीं देते
थक जाते हैं सोचते सोचते
ऐसा क्यों हुआ
हमारे साथ ही
ऐसा क्यों कहा
हमने तो न किसी का कुछ बिगाडा
न कभी किसी का बुरा चाहा
न किसी को व्यंग्य तजा
फिर भी
फिर भी
अब मन चाहता है सबसे मुक्त होना
बहुत निभा लिया
बहुत सह लिया
बहुत भार ढो लिया
ढोते ढोते दब से गए हैं
न ढंग से जी पाए
न ढंग से मर पाएंगे
अगर यही हाल रहा तो
नौकरी से तो रिटायर हो ही चुके
अब इन सबसे रिटायर होना है
पीछे मुड़कर देखना ही नहीं है
अब तक जो भी हुआ
जैसा भी हुआ
हुआ सो हुआ
वह नियति की इच्छा थी
हम भी मजबूर थे
पलट पलट कर देखना
कुछ हासिल नहीं
तब इन सबसे क्यों मन को बोझिल करें
सब छोड़छाड आगे की ओर बढे
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Saturday, 31 October 2020
सबको छोड़ आगे बढ़ें
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