जब तक मैं चुप थी
तब तक खुश थी
अब कुछ बोल दिया
वह सबको खल गया
क्यों इसकी आजादी नहीं क्या
गुलाम तो नहीं
तुम बोलो तो ठीक
हम बोले तो गलत
यह कहाँ का इंसाफ
संबंधो में खुलापन हो
गला घोंटकर नहीं
सबको अपनी बात
अपनी राय रखने की आजादी हो
सबकी सुननी
सबसे कहनी
तभी तो संबंध भी जीवित
अन्यथा जंग लग जाएंगा
एक दिन धडाक से टूट जाएंगा
तब सोचने और कहने का मौका भी नहीं मिलेगा
जंग लगने से पहले ही
रंग रोगन कर ले
ग्रीस और तेल लगाकर चमका ले
जंग को रगड रगड कर छुडा ले
उसको ऐसे ही पडा मत रहने दे
अभिव्यक्ति की आजादी दे
सामान भी पडे पडे जंग लग जाता है
खराब हो जाता है
तब वह तो व्यक्ति है
भावों से भरा हुआ
हलचल होने दे
व्यक्त होने दे
तभी वह भी निखरेगा
संबंध भी निखरेगे
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Saturday, 21 November 2020
संबंधो को निखरने दे
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