Saturday, 21 November 2020

संबंधो को निखरने दे

जब तक मैं चुप थी
तब तक खुश थी
अब कुछ बोल दिया
वह सबको खल गया
क्यों इसकी आजादी नहीं क्या
गुलाम तो नहीं
तुम बोलो तो ठीक
हम बोले तो गलत
यह कहाँ का इंसाफ
संबंधो में खुलापन हो
गला घोंटकर नहीं
सबको अपनी बात
अपनी राय रखने की आजादी हो
सबकी सुननी
सबसे कहनी
तभी तो संबंध भी जीवित
अन्यथा जंग लग जाएंगा
एक दिन धडाक से टूट जाएंगा
तब सोचने और कहने का मौका भी नहीं मिलेगा
जंग लगने से पहले ही
रंग रोगन कर ले
ग्रीस और तेल लगाकर चमका ले
जंग को रगड रगड कर छुडा ले
उसको ऐसे ही पडा मत रहने दे
अभिव्यक्ति की आजादी दे
सामान भी पडे पडे जंग लग जाता है
खराब हो जाता है
तब वह तो व्यक्ति है
भावों से भरा हुआ
हलचल होने दे
व्यक्त होने दे
तभी वह भी निखरेगा
संबंध भी निखरेगे

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