Wednesday, 4 November 2020

वह भी कहाँ हमारे बिन रह पाएंगी

इस दुनिया में कहाँ कुछ ठहरता है
सब आना जाना है
अमरत्व की तो केवल कल्पना है
किसी को नहीं रहना है
इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त देवव्रत को भी
नाभि में अमृत कुंड लिए रावण को भी
हर दौर गुजर जाता है
कुछ कहानी किस्से छोड़ जाता है

जन्म मृत्यु का चक्र जारी
सुख दुःख का भी
सब आनी जानी है
न खुशी ठहरती है न गम
स्थायी तो कुछ भी नहीं
ठहराव तो जिंदगी नहीं
नदी का पानी भी ठहर गया
तब उसमें भी सडांध आ जाएंगी
यह तो जीवन है

जो कुछ हो रहा है
वह हमारी इच्छा से तो नहीं
सब नियति के आधीन है
सर्व जतन कर ले
तब भी खुशी खरीदी नहीं जा सकती
आज गम है कोई बात नहीं
कल खुशी भी होगी
वह गई है तो वापस लौट कर भी आएगी
वह भी कहाँ हमारे बिन रह पाएंगी

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