कहीं चहल-पहल
तो कहीं सूनापन
कहीं रोशनी
तो कहीं अंधेरा
कहीं पकवान
तो कहीं सूखी रोटी
कहीं नये नये कपडे
तो कहीं फटा चिथडा
कहीं होठों पर मुस्कान
कहीं ऑखों में ऑसू
कहीं खुशी
कहीं उदासी
ऐसा क्यों ??
दीपावली तो सबकी है
सबके घर में रोशनी हो
सब खुश हो
तब खुशियां बांटे
अपनी खुशी में से थोड़ी सी खुशी दे दें
आपकी खुशी और दुगुनी हो जाएंगी
कुछ घटेगा नहीं
गरीब की दुआ मिलेगी
मदद कर दें
ज्यादा न सही
थोड़ा ही सही
कुछ कपडे
कुछ मिठाई
कुछ पैसे
ताकि उसके दीए की बाती में भी तेल हो
आपके साथ साथ उसका घर भी रोशन हो
उजाला सब तरफ हो
तभी शोभा देता है
किसी कोने का अंधकार उसकी रंगत बिगाड देता है
सब जगह दीप जगमगाएँ
तभी तो होगी असली दीवाली
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