Thursday, 10 December 2020

मजबूर हो तुम

माँ तुम तो माँ हो
ईश्वर समान हो
समदर्शी हो
हर संतान प्यारी
तब भेदभाव क्यों भारी
एक पर जान न्योछावर
एक पर हमदर्दी
एक को घी चुपड़ी ताजी रोटी
एक को बासी
वह बेटा है
इसलिए उसके सब नखरे जायज
बेटी है उसकी एक छोटी सी इच्छा भी नाजायज
खाना से लेकर पढाई तक
हमेशा करती आई हो भेदभाव
बेटी की शादी में खर्च किया
यह तो तुमको दिखता है
इतना कुछ दिया
बहू को भी तो दिया
बेटे के नाम तो सारी जायदाद
उसका क्षणिक बेटी का
उस पर भी एहसान जताती हो
जबकि हक तो बराबर है
बेटी जान छिडके
तुम्हारे मुख से वाह न निकले
बहू बात सुनाए
तुम्हारे मुख से आह न निकले
जन्म से ही करती आई हो भेदभाव
अब तो बस करों
सच को जानो
बेटी पर तुमने एहसान किया
बेटा तुम पर एहसान जता रहा
तुम्हारी देखभाल कर रहा
यह बता रहा
चुपचाप देख रही हो
सुन रही हो
तब प्यार मजबूरी थी
अब बुढ़ापा मजबूरी है
न तब बोल पाई
न अब बोल पाओगी
बस देखती जाओ
सुनती जाओ
घी - दूध पिलाया है
पक्षपात किया है
तब फिर क्यों बार-बार ऑख भर आती है
बिना बोले भी बहुत कुछ कह जाती है
तुम्हारी मजबूरी बयां कर जाती है

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