माँ को घर में चूल्हा - चौका करते देखता हूँ
तब लगता है मैं भी कुछ मदद करूँ
पिताजी को पसीने मे लथपथ शाम को घर आते देखता हूँ
तब लगता है
मैं भी बडा होकर कमाऊ
उनका बोझ हल्का करूँ
बहन की शादी के वक्त बिदाई में ऑसू तो निकलते हैं
हदय चीर जाता है
काश मैं कुछ कर पाता
मन में बहुत कुछ सोचता हूँ
पढ लिखकर बडा बनू
माता-पिता के सपने पूरा करू
छोटे भाई बहन की जिम्मेदारी उठाऊँ
सबके लिए कुछ न कुछ करूँ
अपने दोस्तों के लिए
रिश्तेदारो के लिए
लडका हूँ
वारिस हूँ
सबके लिए मन में भावना समाई
जब सुनता हूँ
ये आजकल के लडके
क्या जाने
ऐसा नहीं है
हम भी जानते हैं
समझते हैं
लडकी - लडका
यह फर्क तो लोगो का
लडके को भी फर्क पड़ता है
वह भी जिम्मेदार रहता है
शायद भूल जाते हैं
भविष्य में यही परिवार चलाएगा
घर - परिवार का ध्यान रखेंगा
लडकी तो अपने घर जाएंगी
साथ तो यही निभाएँगा
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Thursday, 10 December 2020
लडका हूँ
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