चलो चले फिर लौट चलें
उन्हीं पुरानी राहों पर
अब नहीं लगता यहाँ मन
थक भी गई हूँ अब
अब सहा नहीं जाता
कुछ कहाँ भी नहीं जाता
कहें भी तो किससे
दिल खोले भी तो कहाँ
किसी पर विश्वास नहीं रहा
सबके सब लगते हैं फरेबी
करनी और कथनी मे असमानता
अगर अब नहीं तो कभी नहीं
दम घुटता है
स्वयं को ही भूल रही
स्वयं पर ही विश्वास नहीं
अपने लगते हैं बेगाने
बातें काटने को दौड़ती है
वह राह कभी छोड़ आई थी
आज याद आ रही है
मुश्किल भले रहतीं
आत्मसम्मान तो कायम रहता
आनादर सहना
अपनों द्वारा ही छले जाना
अपने हैं
इसलिए उनका मन न दुखे
तब कब तक अपने मन को दुखाते रहेंगे
अगर संबंध बोझ लगने लगे
तब उसको ढोने से अच्छा उतार दे
चलो फिर लौट चलें
उन्हीं पुरानी राहों पर
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Tuesday, 15 December 2020
चलो फिर लौट चलें
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