Friday, 18 December 2020

मेरा सुहाग

यह माथे की बिंदी
यह मांग का सिंदूर
यह नाक की नथ
यह कानों में झूमका
यह गले का हार
यह बाजूब॔द
यह हाथों में चूडियां
यह ऊंगली मे अंगूठी
यह कमर में करधनी
यह पैरों में पाजेब
सब तेरे ही नाम

यह जब भी चमकती है
खनखनाती है
झनझनाती है
झूमती है
तब कहती है
यह श्रृंगार ही नहीं
तुम्हारा प्यार है
यह गुलामी नहीं आजादी है
इन बंधनों में बंधना अच्छा लगता है
यह पाजेब है जंजीर नहीं
यह सिंदूर है मेरा सम्मान है
यह मंगल सूत्र है
गले की बेडी नहीं
इसमें कोई जोर जबरदस्ती नहीं
इच्छा है मेरी
पहना तो मैंने है
बसे तुम हो
तुम्हारे नाम पर ही मेरा यह सुहाग है

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