Thursday, 17 December 2020

हंसी और रूदन

वह मुस्करा रही थी
हंस रही थी
खिलखिला रही थी
हंसते हंसते लोट पोट हो रही थी
शायद इतनी ज्यादा खुशी
तभी तो यह हाल
या फिर कुछ और ही
कहीं यह व्यथा तो नहीं
कहीं यह रूदन तो नहीं
जो बाहर निकल रही थी इस तरह
जब सहना असह्य हो जाता है
तब ऑसू भी सूख जाते हैं
पत्थर हो जाता है
हंसना और रोना
दोनों ही
जो दिखाते हैं
वही होता हो
ऐसा भी कभी-कभी
होता कुछ
प्रतिक्रिया कुछ
जीवन की जटिलता समझना आसान नहीं

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