Wednesday, 9 December 2020

बात बात की बात

बोलना हमें भी आता है
यह बात दिगर है
हम बोलते नहीं
हम जताते नहीं
क्योंकि हम आपको अपना समझते हैं
वह बात बोलकर क्या फायदा
जो दिल में नश्तर की तरह चुभ जाए
संबंधों में दूरी ला दे
ऐसे बोलने से तो न बोलना ही बेहतर
बात हो तो बात की तरह
वरना न हो
तब तो चुप्पी ही भली
सच सबको पता है
आप क्या है
हम क्या है
यह भी पता होता है
तब बातों से भारी पडना और दवाब बनाना
यह ज्यादा नहीं टिकता है
मन खुला हो
बात संभली हो
तब रिश्ते भी संभलते हैं
अन्यथा देर नहीं लगती
सब कुछ टूटने में
तब पछतावा
बात कहने वाला और सुनने वाला ही दूर
पास आना है तब बात भी करना होगा
यह जितना सोचा समझा हो
तभी टिक पाता है
अन्यथा बहुत कुछ तोड़ जाता है

No comments:

Post a Comment