Wednesday, 9 December 2020

औरत को देखने का नजरिया

बच्चा भूखा था
रोया जा रहा था
चुप होने का नाम नहीं
क्या करें
माँ परेशान
सब यतन कर लिए
अब तो एक ही बाकी है
स्तन से दूध पिलाना
ट्रेन का सफर है
आसपास यात्री बैठे हैं
बाॅटल का दूध खत्म
अब पता नहीं अगले स्टेशन पर मिलता है या नहीं
पति देव की हिदायत है
ट्रेन मे सबके सामने ऐसा मत करना
फिर क्या करूँ
रोने दूं
नहीं यह तो हो नहीं सकता
आखिरकार साडी से ढककर पिलाना शुरू किया
बच्चा खुश रोना बंद
कभी पीता कभी खेलता
अचानक ध्यान आया
आसपास के मुसाफिरों की दृष्टि
कुछ एकटक देख रहें
कुछ कनखियों से
कुछ प्रयत्नशील कि कुछ दिख जाएं
नजरें मिली तो चुराने लगें
क्यों क्या औरत का जिस्म ही नजर आता है
उसकी ममता नहीं
उनका भी तो परिचय प्रथम माँ के वक्षस्थल से ही हुआ होगा
क्या उसमें वासना थी
नहीं न
हर औरत एक माँ भी है
कभी उस नजर से देखा जाए
पवित्रता की भावना से
एक ही रिश्ता नहीं है समाज में
केवल मर्द और औरत का
बहुत से है
बस देखने की जरूरत है
नजरिये की जरूरत है
तब किसी में अपनी माँ
किसी में बहन
किसी में बेटी
नजर आएंगी

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