Monday, 4 January 2021

मैंने रास्ता पूछा

मैंने रास्ता पूछा
रास्ते में तरह तरह के लोग मिले
कुछ ने ना में सर हिलाया
कुछ ने मुंह बिचकाया
कुछ ने घूरा
कुछ ने उल्टा-पुल्टा बोला
कुछ ने गलत बताया
कुछ ने कहा
बस इतनी ही दूर
बस कुछ ही मिले
जो सही बतला पाएं
खुशी से राह दिखाया
पूछते - पाछते
आखिरकार हम अपनी मंजिल पर आ ही गए
कभी-कभी भटक गएँ
कभी मायूस हो गएँ
कभी खिन्न हो गएँ
कभी वापस लौटने की सोच लिएं
न जाने कितने कितने पडाव पार किएं
तब जाकर रास्ता मिला
हम अपनी मंजिल पर पहुंचे
तब समझ में आया
मंजिल इतनी आसानी से नहीं मिलती
तरह-तरह की रुकावटें - बाधाएं
उन सबको पार करें
तभी तो वहाँ तक पहुँचे ।

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