Thursday, 7 January 2021

चुप रहें कब तक

चुप रहो चुप रहो
शांति बनाए रखों
कब तक चुप रहे यार
चुप्पी की भी एक मर्यादा होती है
तुम जो कुछ भी कहो
तुम जो कुछ भी करो
हम बस चुप रहें
सारी तोहमत हम पर
देर से आओ तुम
दोष हम पर
तुम्हारी सब बात जायज
सब बात सही
हम ही हर दम गलत
ऐसा तो हो नहीं सकता
शांति बनाएं रखने की जिम्मेदारी हमारी
सबको जोड़ कर रखने की जिम्मेदारी हमारी
रिश्ते संभालने की जिम्मेदारी हमारी
आखिर कब तक ?,
घर मेरा ही नहीं तुम्हारा भी है
कर्तव्य तुम्हारा भी है
सब भार एक पर
तब तो ऐसा न हो
दब जाएं और उठ न सके
या विद्रोह पर आ जाएं
सब कुछ छोड़ दें
जहाँ विचार खुले न हो
दूसरे की बात सुनी न जाती हो
बस अपनी ही हांके जाती हो
वहाँ शांति का भी दम घुट जाता है
अपने आप सब अंशात हो जाता है

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