Sunday, 31 January 2021

मैं कविता लिखती हूँ

मैं कविता लिखती हूँ
सोच कर नहीं
अपने मन की बात लिखती हूँ
भावनाओं को शब्दों में उडेलती हूँ
कोई पूछता है
क्या फायदा
फालतू का सर खफाना
मुझे आनंद आता है
मन को सुकून मिलता है
एक सुखद अनुभूति होती है
दुख और उदासी को शब्दों में उडेलकर
एक अंजानी सी खुशी मिलती है
अपनी ही नहीं
दूसरों की भी व्यथा से लोगों को रूबरू कराती हूँ
मन ही मन बातें करती हूँ
तब जाकर कविता प्रस्फुटित होती है
अपने आप कलम चलती है
बिना सोचे
अपने आप सब लिखती जाती है
जब वह तैयार हो जाती है
फिर से पढती हूँ
तब लगता है
अरे वाह
क्या खूब लिखा है
अपनी पीठ आप थपथपाती हूँ
स्वयं की लेखनी पर इतराती हूँ
हाँ सही बात है
मैं कविता लिखती हूँ

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