संघर्ष ही जीवन है
ठीक है
इस पर भी तो विराम हो
सारा जीवन इसी मे बीत जाय
प्रतिफल तो मिले
नहीं तो मन व्याकुल होने लगता है
उचाट हो जाता है
लगता है
सब छोड़छाड दो
अर्जुन कब तक बन जूझता रहे
लडाई भी करने का मन न करें
अपना ही मन सवाल करें
क्या हासिल होगा इससे
सबको कृष्ण नहीं मिलते
न सब गांडीवधारी होते हैं
महाभारत भी मन से नहीं
वन में भटकते भटकते थक गए पांडव
हाथ क्या लगा
आखिर में फिर हिमालय की शरण
हर चीज का एक पडाव होता है
वैसे ही संघर्षों का भी
इसमें व्यक्ति कहीं न कहीं स्वयं खो जाता है
सीमा हो इसकी भी
जीवन भर संघर्ष ही किया
जीवन न ढंग से जीया
तब उसका लाभ क्या ??
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Tuesday, 2 February 2021
संघर्ष की भी सीमा हो
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