पेड़ सूखा था
वसंत का आगमन होने को था
सब इंतजार कर रहे थे
कब हरा - भरा होगा
पत्ते - फूल आएंगे
तब हम विचरण करेंगे
ठूंठ और सूखे पर कौन बसेरा डालेगा
एक चिडिया उसी पर रहती थी
उसने नहीं छोड़ा
फुदकती रही
बच्चों को जन्म दिया
अब बच्चे भी निकले
सब बडे हो रहे थे
सब छोड़कर जा रहे थे
चिडियाँ नहीं गयी
वह अपने आशियाने में पडी रही
उसे अपने घोसले से प्यार था
उसको यहाँ वहाँ भटकना नहीं था
वसंत आया
पेड़ फिर लहलहाया
झूमने लगा
चिडियाँ खुश हो इस डाली से उस डाली डोलती
यह सब देख फिर सब वापस आए
मन में थोड़ा कसक थी
पेड़ हमारे बारे में क्या सोचेंगा
कितने स्वार्थी हो गए हम
कठिनाई में छोड़ा
भरा- पुरा तब फिर आए
शर्म से झुकी हुई नजर सबकी देख
चिडियाँ ने कहा
आओ अपना घर अपना ही होता है
तुम उसको भले छोड़ दो
वह तुम्हें हर हाल में स्वीकार करेंगा
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Saturday, 20 February 2021
अपना घर अपना ही
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