Wednesday, 31 March 2021

कब जाएंगा यह काल

मैं तो निकला था साहब घर से
अपने बच्चों के लिए कुछ लेने
मचलने लगे खाने के लिए
सोचा कुछ ले आऊं
त्यौहार है
थोड़ी सी मिठाई और नमकीन ले आऊं
कब से बाहर का कुछ खाया नहीं
आखिरी बचा पांच सौ रूपया जेब में रखा
साईकिल उठाया
चल पडा बाजार
इस उत्साह में मास्क लगाना भूल गया
कुछ ही आगे गया
आपने पकड़ लिया
माना मेरी गलती थी
माफी भी मांगी
पर आप नहीं पिघले
नियम - कानून का पालन
पांच सौ जुर्माना
वह दे आया आपको
घर पर बच्चे इंतजार में
आते ही लिपट गए
मैं उनको परे कर एक कोने में मुँह लटकाकर बैठ गया
वे खाऊं खाऊं ढूंढ रहे थे
मैं मुख छिपा रहा था
जो पैसे थे वह भी चले गए
करोना की वजह से न जाने कितना जुर्माना भरें
बद से बदतर हैं हालात
जा - जाकर लौट आ रहा है
इस पर न है कोई लगाम
त्राहि - त्राहि मची है
सब त्रस्त है
जीवन बेजार हुआ है
काम - धंधे का अकाल है
जीते जी मार रहा है
करोना नहीं काल है
बस यह जाएं
यही सबको इंतजार है

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