Sunday, 28 March 2021

खत से मोबाइल पर तुम वहीं के वहीं

पति देव हमारे हैं अनुशासन प्रिय
हर चीज में अनुशासन
खाने - पीने से लेकर बातचीत तक
हम तो ठहरे कवि प्रवृत्ति
बेपरवाह , मनमौजी
बात उस जमाने की है
जब खत से वार्तालाप होता था
खत हम भेजते थे
खूब लंबा - चौडा
प्यार भरी बातें
कुछ शायरी कुछ कविता
साहित्य के विधार्थी ठहरे हम
शब्दों की तो कमी नहीं
कहते पत्र लेकर हाथ में तौल कर देखता हूँ
कितना वजन है
तब ड्यूटी से फ्री होकर आराम से पढता हूँ
जवाब में पत्र तो एकदम समय से आता था
उत्सुकता थी खोलकर देखने की
यह क्या
अंतर्देशीय में या लिफाफे में
बस गिन - चुनकर चार वाक्य
मैं ठीक हूँ
तुम कैसी हो
ठीक से रहना
सबको प्रणाम
खत को देखकर सर पर हाथ रख लेती
क्या आदमी हैं
इतना भी नहीं लिख सकते
कि तुम्हारी याद आती है
तुमसे बहुत प्यार करता हूँ
एक बार मैंने उनसे शिकायत की
जवाब में लंबा - चौडा दो पन्नों का खत
इतना लिखूं तब तुमको समझ में आएगा
मैं तुमको चाहता हूँ
उसके बाद से तो मैंने कान पकड़ तौबा कर ली

जमाना बदला
फोन का समय आया
सिलसिला वही रहा
एस टी डी से फोन करते
बात उतनी ही चार वाक्य की करते
फिर आया मोबाइल का
वह भी समय तय
आठ बजे तो आठ बजे आना है
नेट में गडबड हो तब परेशान
जब तक न लगे तब तक
आज चालीस साल हो गए हैं
यह याद नहीं कि उनका फोन न आया हो
हाँ कुछ टेक्निकल प्रॉब्लम से भले हुआ हो
वह भी एकाध बार

वह व्यक्ति जो प्रेम के एक शब्द नहीं कह सकता पर
फोन करने के लिए दो किलोमीटर आता हो
जहाँ सुविधा न हो
तब यह बात कहना जरूरी नहीं कि
तुम्हारी याद आती है
गंभीर और नीरस
फिर भी कुछ बात तो हैं
जिससे हम आज तक बंधे हैं
बहुत उतार - चढाव देखा है जिंदगी में
फिर भी हारे नहीं
आत्मविश्वास था
पता था हम आगे - आगे
तुम पीछे - पीछे भले चलो
पर चलोगे तो सही
करोंगे भी वहीं
जो हम चाहे

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