एक तरूण जो थाली चाट डालता था खाते वक्त। एक भी अन्न का दाना नहीं रहता था उसकी थाली में। खाना कैसा भी हो कभी मीन मेख नहीं निकालता था । सब आश्चर्य थे उसकी इस आदत पर ।घरवाले और बाहर वाले भी ।
कोई कोई तो उसे भुक्खड भी समझ लेते थे ।
एक दिन किसी दोस्त ने मजाक मजाक में पूछ लिया
उत्तर जो मिला उससे वह अनुत्तरित हो गया ।
पहला कारण मेरे पिता बहुत मेहनत से हमारे लिए भोजन जुटाते हैं। दिन रात मेहनत करते हैं। उनके पसीने की कमाई है ।उसे मैं जाया नहीं कर सकता । नसीब वाला हूँ कि उनके कारण हमें दो वक्त का भोजन नसीब होता है।
दूसरा कारण मेरी माँ बहुत प्यार से भोजन बनाती है परोसती है ।दिन रात इसी चिंता में रहती है कि मेरे बच्चों का पेट भरा या नहीं ।अपनी नींद और सुख चैन त्याग करती है तब यह स्वादिष्ट भोजन मिलता है।
तीसरा कारण है हमारे देश के किसान । दिन - रात एक कर , खेतों में पसीना बहा , मौसम की मार सहकर अन्न उपजाता है इस अनमोल अन्न का अपमान मैं कैसे कर सकता हूँ ।
उनसे पूछो जिन्हें दो वक्त की रोटी नसीब नहीं होती ।पशु से भी बदतर जीवन जीते हैं ।ईश्वर की कृपा से भोजन मिल रहा है वह भी प्यार , अपनेपन और सम्मान से । वह भोजन मैं कैसे छोड़ सकता हूँ जिसमें
मेरे पिता की मेहनत और माँ का प्यार समाया हो ।
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Sunday, 25 April 2021
अन्न का अपमान यानि अन्नदाता का अपमान
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