Wednesday, 12 May 2021

ये प्यारे रिश्ते

कितना सुनता  हूँ
माँ  की  डाट
बहन की फटकार
पत्नी की शिकायत
बेटी का तर्क  - वितर्क
कहीं  झुक जाता हूँ
कहीं  समझौता  कर लेता हूँ
कहीं  चुप रह जाता हूँ
कहीं  हार मान लेता हूँ
ऐसा क्यों  करता हूँ??
मैं  तो पुरूष  हूँ  न
घर का चिराग
घर का मुखिया
तब भी
हाँ  तब भी
क्योंकि ये सब बहुत  प्यार  करती हैं
हर वक्त  मेरी ही चिंता  रहती है
मेरे उठने - बैठने
खाने - पीने से सोने तक
मैं  इनका आधार हूँ
मेरी  हर पीडा  इनकी है
इतना ध्यान  जो रखें
उनके लिए  मैं  कुछ  भी करूँ
भले ही माँ  का लल्ला
जोरू  का गुलाम 
इन उपाधियों  से  नवाजा  जाऊं
वह स्वीकार
जब बडी होती  बेटी डांटती है
तब होठों  पर मुस्कान  आ जाती है
जब पत्नी  नाराज होती है तब वह नजारा भी भाता है
जब माँ  रो कर ऑसू पोंछती  है  तब  ममता हिलोरे लेती है
सबका केंद्र बिंदु  मैं
मेरे जीवन यात्रा  के ये अनमोल  साथी
हमेशा  कर्जदार  रहूंगा 
इन प्यारों  रिश्तों  का

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