Wednesday, 5 May 2021

प्रेम विवाह और जाति - धर्म

अगर प्रेम  विवाह  किया
अपनी मर्जी  से निर्णय  लिया
मेरा मरा हुआ मुख देखना ।
अक्सर  ऐसी बातें भारतीय  अभिभावकों  की  तरफ से होती हैं
यह उनकी इज्जत  और प्रतिष्ठा  का सवाल होता है
जमाना  बदला है अब कुछ  लोग स्वीकार  कर रहे हैं  पर उनकी संख्या  कुछ प्रतिशत  ही है
अच्छे  - अच्छे  परिवारों  में भी इज्जत  की दुहाई  देकर या तो उनकी जान ली जाती है या
अपनी जान दी जाती है
इसका परिणाम  न जाने  कितनी  जिंदगियां  बरबाद हो जाती है
हमारे  एक परिचित की बेटी जो ब्राह्मण थे उनकी बेटी ने बंगाली से ब्याह  किया वह भी ब्राह्मण  ही था फिर भी वह उसको स्वीकार  न कर पाएं
बेटी सुखी है फिर भी मलाल है कि भले दरिद्र  और गरीब  होता तो समाज  के  सामने  गर्व से खडा कर देते पर इसको तो नहीं
यह भी धारणा कि हम  ही हिन्दू हम  ही श्रेष्ठ
यहाँ  तक जातिवाद कि एक जाति का धोबी वह चमार के यहाँ  रोटी - बेटी वाला रिश्ता  नहीं  करेंगा
योग्यता - संपत्ति  सब ताक पर
बस जाति वाला हो तो वह सर - माथे  पर
फिर वह कैसा भी  हो ।
जाति  का तो यह हाल है
धर्म  का तो और भयावह
लव जिहाद  के  नाम से  सब लोग परिचित  ही हैं
धर्म  में  तो भगवान  भी आ जाते हैं
तब तो और भी बुरा हाल ।
प्रान्त  और भाषा  भी हैं  ही ।
जाति , जाति से टकराती है
धर्म  , धर्म  से टकराता है
भाषा और प्रान्त  भी एक - दूसरे से टकराते हैं
इस टकराव में  न जाने  कितनी  जिंदगियां  बिखर जाती  हैं
बरबाद हो जाती हैं
समय से पहले दुनिया  छोड  जाती  हैं
जिंदगी  पर ये हावी  हो जाती हैं

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